भोले का चूरमा भजन लिरिक्स Bhole Ka Churma Bhajan Lyrics Shiv Bhajan Lyrics

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भोले का चूरमा भजन लिरिक्स Bhole Ka Churma Bhajan Lyrics Shiv Bhajan Lyrics Hindi

देख मेरा प्रसाद भोले खा कै,
लाया देसी घी चूरमा बणा कै,
मेरा बाबू लड़ेगा,

मेरी माँ न बणाया, भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा,
मेरी माँ न बणाया, भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा,

देखी सै भांग तने पी कै भतेरी,
देसी खाणा खावो, भोला इच्छा सै मेरी,

देखी सै भांग तन्ने पी कै भतेरी,
देसी खाणा खाव् भोला इच्छा सै मेरी
कुंडी यो सोटा तने ठाकै र भगाणा पड़ेगा

मेरी माँ न बणाया भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा
मेरी माँ न बणाया भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा

घरका ने भेज्या सै घणा समझा कै,
घरक्या न भेज्या सै घणा समझा कै,
मानूगा भोले तने चूरमा खुवाके,
बैठ्या चरणा म ध्यान लगा क तने आणा पड़गा

मेरी माँ न बणाया भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा
मेरी माँ न बणाया भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा

ओ सोनू सारंगपुरिया तेरा भगत पुराणा
राजू पंजाबी न तेरा ही गुण गाणा

ओ सोनू सारंगपुरिया तेरा भगत पुराणा

राजू पंजाबी न तेरा ही गुण गाणा
संग गोरा और नंदी क भोले तने आणा पड़गा

मेरी माँ न बणाया भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा
मेरी माँ न बणाया भोले चूरमा तने खाणा पड़ेगा

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भोले का चूरमा भजन लिरिक्स Bhole Ka Churma Bhajan Lyrics Shiv Bhajan Lyrics Hindi

Dekh Mera Prasaad Bhole Kha Kai,
Laaya Desee Ghee Choorama Bana Kai,
Mera Baaboo Ladega,

Meree Maan Na Banaaya, Bhole Choorama Tane Khaana Padega,
Meree Maan Na Banaaya, Bhole Choorama Tane Khaana Padega,

Dekhee Sai Bhaang Tane Pee Kai Bhateree,
Desee Khaana Khaavo, Bhola Ichchha Sai Meree,

Dekhee Sai Bhaang Tanne Pee Kai Bhateree,
Desee Khaana Khaav Bhola Ichchha Sai Meree
Kundee Yo Sota Tane Thaakai Ra Bhagaana Padega

Meree Maan Na Banaaya Bhole Choorama Tane Khaana Padega
Meree Maan Na Banaaya Bhole Choorama Tane Khaana Padega

Gharaka Ne Bhejya Sai Ghana Samajha Kai,
Gharakya Na Bhejya Sai Ghana Samajha Kai,
Maanooga Bhole Tane Choorama Khuvaake,
Baithya Charana Ma Dhyaan Laga Ka Tane Aana Padaga

Meree Maan Na Banaaya Bhole Choorama Tane Khaana Padega
Meree Maan Na Banaaya Bhole Choorama Tane Khaana Padega

O Sonoo Saarangapuriya Tera Bhagat Puraana
Raajoo Panjaabee Na Tera Hee Gun Gaana

O Sonoo Saarangapuriya Tera Bhagat Puraana
Raajoo Panjaabee Na Tera Hee Gun Gaana
Sang Gora Aur Nandee Ka Bhole Tane Aana Padaga

Meree Maan Na Banaaya Bhole Choorama Tane Khaana Padega
Meree Maan Na Banaaya Bhole Choorama Tane Khaana Padega

क्यों कहते हैं शिव जी को भोले भंडारी ?
शिव जी को “भोले भंडारी” के नाम से भी पुकारते हैं , लेकिन क्यों ? कारन नाम से ही स्पष्ट है। शिव जी को भोले भंडारी के नाम से इसलिए जाना जाता है क्यों की वो अपने भक्तों पर बहुत दयालु हैं और जो उन्हें याद करते हैं, भले ही पूजा अर्चना ना ही करते हों, उन पर सदैव बाबा का हाथ होता है और वो उन्हें भी आशीर्वाद देते हैं।  शिव जी की पूजा के लिए भी किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती हैं।  बाबा को मात्रा बेल पत्र और पानी से भी प्रशन्न किया जा सकता है।  बाबा के भोले स्वाभाव के कारन ही शिव जी को भोले भंडारी कहा जाता है। 

यहाँ ये भी दिलचस्प है की एक और तो शिवजी को सम्पूर्ण श्रस्टि का विनाश करने की ताकत रखने वाला और भूत प्रेत के साथ रहने वाला और शमशान निवासी बताया गया है और वही दूसरी और भक्तों के लिए बाबा भोलेनाथ भी हैं ? 
भोलेनाथ का शाब्दिक अर्थ है बच्चे की तरह से मासूमियत रखने वाला “भोला ” . भक्तों के लिए बाबा के दिल में सदैव आशीर्वाद होता है और किसी तरह से अहंकार नहीं होता है। 
क्या है कहानी बाबा के “भोलेनाथ” बनने की ?
बाबा के भोलेनाथ बनने के पीछे एक कहानी है।  एक समय की बात है एक असुर जिसका नाम भस्मासुर था उसने बाबा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी। तपस्या भी ऐसी की उसने रात और दिन एक कर दिए। बाबा ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसके सामने आये और कहा की उसकी क्या मनोकामना है।  इस पर भस्मासुर के बाबा से वरदान माँगा की उसे ऐसा वरदान दे की कोई भी उसे छूते ही भस्म हो जाए। बाबा ने दैत्य की इस मनोकामना को पूर्ण कर दिया। लेकिन असुर तो होते ही असुर हैं, भस्मासुर ने सोचा की क्यों ना शिव जी के वरदान की परीक्षा शिव जी से ही ली जाए और शिव जी के समाप्त होते ही उससे श्रेष्ठ इस संसार में कोई नहीं होगा।
 
भष्मासुर जब शिव जी की और उन्हें भस्म करने के लिए दौड़ा तो शिव जी भी आगे आगे दौड़ने लगे।  भगवन विष्णु जी ने जब ये नजारा देखा तो तुरंत पूरा माजरा समझ गए और शिव जी की मदद के लिए उन्होंने मोहिनी का रूप धारण कर असुर का ध्यान अपनी और खींचा। अपने मोहक नृत्य से भस्मासुर का हाथ उसके ही सर पर रखवा दिया जिससे भस्मासुर भस्म हो गया।  ये उदहारण है की शिव जी कितने भोले स्वभाव के हैं। यही कारन हैं की भगवन शिव जी को भोले नाथ के नाम से पुकारा जाता है।

श्री शिव को देवो के देव महादेव कहा जाता है। श्री शिव भोलेनाथ भी हैं जो बड़ी ही सहजता से अपने भक्तों को प्रशन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। श्री शिव का स्मरण करते ही एक छवि बनती है अलमस्त, अपने हाथ में डमरू, त्रिशूल और गले में नाग देवता और मस्तक पर चन्द्रमा दिखाई देता है। श्री शिव जी के पास त्रिशूल, डमरू,गले में नाग और मस्तक पर चन्द्रमा कहा से आये, आइये जानते हैं। 

श्री शिव और त्रिशूल : श्रष्टि की उत्पत्ति के समय रज तम और सत का भी जन्म हुआ था। श्री शिव उसी समय श्री शिव इन तीन शूल को त्रिशूल रूप में धारण करते हैं। भगवान् शिव धनुष भी धारण करते हैं जिसका नाम पिनाक था जिसका आविष्कार स्वंय श्री शिव ने किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्री शिव अस्त्र शस्त्र के परम ज्ञाता थे और हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुणता हासिल थी। मान्यता है की त्रिशूल तीन देवों का भी प्रतीक है ब्रह्म, विष्णु और महेश। देवी शक्ति त्रिसूल से असुर शक्तियों का विनाश करती हैं इसलिए त्रिशूल को माता लक्ष्मी, माता पार्वती और माता सरस्वती जी के प्रतीकात्मक शक्ति के रूप में भी देखा जाता है। 

श्री शिव और डमरू : श्रष्टि के जन्म पर सरस्वती जी ने वीणा बजाकर ध्वनि को पैदा किया। श्री शिव ने आनंदित होकर १४ बार डमरू बजाय और सुर, लय, व्याकरण और ताल का आविष्कार किया। तभी से सभी सुरों का जन्म हुआ बताया जाता है और यही कारन है की श्री शिव जी हाथों में डमरू धारण किये हुए दिखता है। डमरू को ब्रह्म का प्रतीक भी माना जाता है। हिन्दू धर्म का नृत्य और गायन से गहरा सम्बद्ध रहा है। श्रष्टि की रचना भी ध्वनि और दैवीय प्रकाश से हुयी है। ध्वनि के महत्त्व को शिव जी के डमरू से समझा जा सकता है।
शिव के गले में शोभित नाग : नागों के स्वामी हैं वासुकि और उन्हें श्री शिव के पास रहने का वरदान प्राप्त है। वासुकि श्री शिव के परम भक्त हैं इसलिए वो सदा शिव के गले पर लिपटा रहना पसंद करते हैं। समुद्र मंथन के समय वासुकि ने रस्सी का काम किया था। यही कारण है की श्री शिव के गले में नाग आभूषण की तरह से दिखाई देते हैं।
मस्तक पर चन्द्रमा : चंद्र देव का विवाह दक्ष प्रजापति की २७ कन्याओं से हुआ था। यह कन्याओं २७ नक्षत्र भी कही जाती हैं। चंद्र देव रोहिणी से विशेष प्रेम करते थे और अन्य कन्याओं ने जब दक्ष से इस बारे में शिकायत की तो उन्होंने चंद्र देव को क्षय होने का श्राप दिया। श्री चंद्र देव ने क्षय होने के श्राप से बचने के लिए श्री शिव की पूजा और तपस्या सोमनाथ में शुरू की। श्री चंद्र देव की तपस्या से प्रशन्न होकर श्री शिव ने चंद्र देव को अपने शीश पर स्थान दिया। चंद्र देव के आकार का घटना और बढ़ना दक्ष प्रजापति जी के श्राप के कारन ही होता है। 
 

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